Review: Baramasi
Baramasi by Gyan Chaturvedi
My rating: 2 of 5 stars
अम्माँ ने कहा, ‘‘ अब क्या करना है चंदू का?” गुच्चन ने कहा, “सबकी राय यही बन रही है कि चंदू डाक्टरी पढ़ें।” “हम भी जेई कह रहे हैं।” “चंदू की भी बड़ी इच्छा है कि” “डाक्टरी की पढ़ाई बड़ी महँगी सुनते हैं?” “सो तो है जिज्जी पर कुछ न कुछ तो करेंगे।” “क्या करोगे भैया?” “खाल बेचकर भी पढ़ाना पड़ा, तो पढ़ाएँगे।” “हमाई- तुमाई खाल कौन खरीदेगा भैया? नहीं ऐसी अँधरसट्ट बातों से तो काम न चलेगा गुच्चन” “कहूँ से उधार भी मिल सकता तो” “भिखारिन की रिश्तेदारी भिखारिन में ही होती है” “सोना- चाँदी गिरवी रखें तों?” “इत्तो सोना- चाँदी नहीं छोड़ गए तुम्हारे बाप” “फिर चंदू को समझाते हैं कि इस चक्कर में न पड़ें” “ऐसी बात भूल के भी न कहियो बेटा चंदू अगर पढ़ें, तो हमें पढ़ाना ही है” देर तक चर्चा के बाद तय पाया गया कि गाँव जाकर खेती की एक चौथाई जमीन बेचनी पड़ेगी। यदि चंदू का डॉक्टरी में प्रवेश होता है तो उसके खर्चों के लिए यह तो करना ही होगा। आगे की देखी जाएगीयह कहकर आगे जिज्जी ने वह लोकप्रिय वाक्य कहा, जो आम हिंदुस्तानी को बड़े से बड़े दलिद्दर में भी जीवित रखता है। उन्होंने कहा कि “जिसने डाक्टरी में घुसाया, वही आगे भी कुछ इंतजाम करेगा।” ‘जिसने’ का मतलब ईश्वर ने। इस तरह ईश्वर को बीच में डालकर जिज्जी तथा गुच्चन दोनों का मन थोड़ा हल्का हुआ।
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लल्ला एक दिन कुएँ में कूद गए। कुआँ घर में ही था, सो कूदने को दूर नहीं जाना पड़ा। कूदकर डूबे नहीं, क्योंकि डूबने के लिए कूदे भी नहीं थे। तैरते रहे। तैरकर जोर- जोर से कुछ चिल्लाते रहे, जो गहरे कुएँ की दीवारों से टकराकर ऐसा गूँजता रहा कि ऊपर कुएँ की जगत पर खड़े गुच्चन, अम्माँ, छुट्टन आदि कुछ भी समझ नहीं पा रहे थे। गुच्चन ऊपर से रस्सी लटकाकर लल्ला के सिर के पास गोल- गोल झुला रहे थे। लल्ला तैरते रहे। रस्सी उन्होंने नहीं पकड़ी। वे चिल्लाते रहे और तैरते रहे। उन्होंने प्रोटेस्ट के तौर पर कुएँ में छलाँग लगाई थी और प्रोटेस्ट जाहिर करने के लिए जरूरी था कि बचाव कार्य के लिए फेंकी रस्सी का सहारा न लिया जाए। “लल्ला, रस्सी पकड़ के ऊपर आ जाओ,” छुट्टन ने अपने मुँह को कुएँ के मुँह में घुसेड़ते हुए चिल्लाकर कहा। लल्ला ने नीचे से कहा, “हम न पकड़ेंगे अब हमारी लास ही बाहर आएगी।” मरने की धमकी देने के बावजूद वे तैरते रहे। “तुम बाहर आ जाओ फिर जैसा चाहोगे, वैसा कर लेंगे।” गुच्चन अपेक्षाकृत शांत थे। “बेटा बाहर आ जा,” अम्माँ विह्वल थीं। “हम बाहर न आएँगे,” लल्ला ने जोर से चिल्लाकर कहा और इस चक्कर में गोता खा गए।
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अम्माँ ने कहा, ‘‘ अब क्या करना है चंदू का?” गुच्चन ने कहा, “सबकी राय यही बन रही है कि चंदू डाक्टरी पढ़ें।” “हम भी जेई कह रहे हैं।” “चंदू की भी बड़ी इच्छा है कि” “डाक्टरी की पढ़ाई बड़ी महँगी सुनते हैं?” “सो तो है जिज्जी पर कुछ न कुछ तो करेंगे।” “क्या करोगे भैया?” “खाल बेचकर भी पढ़ाना पड़ा, तो पढ़ाएँगे।” “हमाई- तुमाई खाल कौन खरीदेगा भैया? नहीं ऐसी अँधरसट्ट बातों से तो काम न चलेगा गुच्चन” “कहूँ से उधार भी मिल सकता तो” “भिखारिन की रिश्तेदारी भिखारिन में ही होती है” “सोना- चाँदी गिरवी रखें तों?” “इत्तो सोना- चाँदी नहीं छोड़ गए तुम्हारे बाप” “फिर चंदू को समझाते हैं कि इस चक्कर में न पड़ें” “ऐसी बात भूल के भी न कहियो बेटा चंदू अगर पढ़ें, तो हमें पढ़ाना ही है” देर तक चर्चा के बाद तय पाया गया कि गाँव जाकर खेती की एक चौथाई जमीन बेचनी पड़ेगी। यदि चंदू का डॉक्टरी में प्रवेश होता है तो उसके खर्चों के लिए यह तो करना ही होगा। आगे की देखी जाएगीयह कहकर आगे जिज्जी ने वह लोकप्रिय वाक्य कहा, जो आम हिंदुस्तानी को बड़े से बड़े दलिद्दर में भी जीवित रखता है। उन्होंने कहा कि “जिसने डाक्टरी में घुसाया, वही आगे भी कुछ इंतजाम करेगा।” ‘जिसने’ का मतलब ईश्वर ने। इस तरह ईश्वर को बीच में डालकर जिज्जी तथा गुच्चन दोनों का मन थोड़ा हल्का हुआ।
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लल्ला एक दिन कुएँ में कूद गए। कुआँ घर में ही था, सो कूदने को दूर नहीं जाना पड़ा। कूदकर डूबे नहीं, क्योंकि डूबने के लिए कूदे भी नहीं थे। तैरते रहे। तैरकर जोर- जोर से कुछ चिल्लाते रहे, जो गहरे कुएँ की दीवारों से टकराकर ऐसा गूँजता रहा कि ऊपर कुएँ की जगत पर खड़े गुच्चन, अम्माँ, छुट्टन आदि कुछ भी समझ नहीं पा रहे थे। गुच्चन ऊपर से रस्सी लटकाकर लल्ला के सिर के पास गोल- गोल झुला रहे थे। लल्ला तैरते रहे। रस्सी उन्होंने नहीं पकड़ी। वे चिल्लाते रहे और तैरते रहे। उन्होंने प्रोटेस्ट के तौर पर कुएँ में छलाँग लगाई थी और प्रोटेस्ट जाहिर करने के लिए जरूरी था कि बचाव कार्य के लिए फेंकी रस्सी का सहारा न लिया जाए। “लल्ला, रस्सी पकड़ के ऊपर आ जाओ,” छुट्टन ने अपने मुँह को कुएँ के मुँह में घुसेड़ते हुए चिल्लाकर कहा। लल्ला ने नीचे से कहा, “हम न पकड़ेंगे अब हमारी लास ही बाहर आएगी।” मरने की धमकी देने के बावजूद वे तैरते रहे। “तुम बाहर आ जाओ फिर जैसा चाहोगे, वैसा कर लेंगे।” गुच्चन अपेक्षाकृत शांत थे। “बेटा बाहर आ जा,” अम्माँ विह्वल थीं। “हम बाहर न आएँगे,” लल्ला ने जोर से चिल्लाकर कहा और इस चक्कर में गोता खा गए।
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